Thursday, 8 September 2022

जैव प्रक्रम

 जैव प्रक्रम

वे सभी प्रक्रम जो संयुक्त रूप से जीव के अनुरक्षण का कार्य करते है , जैव प्रक्रम कहलाते है  


पोषण

भोजन ग्रहण करना, पचे भोजन का अवशोषण एवं शरीर द्वारा अनुरक्षण के लिए उसका उपयोग, पोषण कहलाता है 

पोषण के आधार पर जीवों को दो समूह में बांटा जाता है 


स्वपोषी पोषण

स्वपोषी पोषण हरे पौधों में तथा कुछ जीवाणुओं जो प्रकाश संश्लेषण कर सकते हैं, में होता है  

प्रकाश संश्लेषण

यह वह प्रक्रम है जिसमें स्वपोषी बाहर से लिए पदार्थों को ऊर्जा संचित रूप में परिवर्तित कर देता है 


प्रकाश संश्लेषण के लिए आवश्यक कच्ची सामग्री

प्रकाश संश्लेषण के दौरान निम्नलिखित घटनाएं होती है
रंध्र      
पत्ती की सतह पर जो सूक्ष्म छिद्र होते हैं, उसे रंध्र कहते हैं। 

रंध्र के प्रमुख कार्य

1.प्रकाश संश्लेषण के लिए गैसों का अधिकांश आदान-प्रदान इन्हीं छिद्रों के द्वारा होता है। 
2.वाष्पोत्सर्जन प्रक्रिया में जल (जल वाष्प के रूप में) रंध्र द्वारा निकल जाता है। 


 चित्र . रंध्र -पत्ती की सतह पर सूक्ष्म छिद्र  श्वसन गैसों के विनिमय और वाष्पोत्सर्जन के लिए खुलते बंद होते हैं । 
























ज्वालामुखी से सम्बन्धित मुख्य तथ्य

 ज्वालामुखी से सम्बन्धित मुख्य तथ्य


1.सक्रिय ज्वालामुखी अधिकांशतः “प्रशांत महासागर” के तटीय भाग में पाया जाता हैं. प्रशांत महासागर के परिमेखला को “अग्नि वलय” ( Fire ring of the pacific ) भी कहते हैं.


2.सबसे अधिक सक्रिय ज्वालामुखी अमेरिका एवं एशिया महाद्वीप के तटों पर स्थित हैं.


3.ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप में एक भी ज्वालामुखी नही हैं.


4.विश्व का सबसे ऊँचा ज्वालामुखी पर्वत “कोटापैक्सी” (इक्वेडोर) हैं, जिसकी ऊँचाई 19,613 फीट हैं.


5.विश्व की सबसे ऊँचाई पर स्थित सक्रिय ज्वालामुखी “ओजस डेल सालाडो” (6885मी.) एण्डीज पर्वतमाला में आर्जेन्टीना चिली देश के सीमा पर स्थित हैं.


6.विश्व की सबसे ऊँचाई पर स्थित शान्त ज्वालामुखी एकान्कागुआ (Aconcagua) एण्डीज पर्वतमाला पर ही स्थित हैं, जिसकी ऊँचाई 6960 मी. हैं.


7.स्ट्राम्बोली भूमध्य सागर में सिसली के उत्तर में लिपारी द्वीप पर अवस्थित हैं. इसमें सदा प्रज्वलित गैस निकला करती हैं, जिससे आस-पास का भाग प्रकाशित रहता हैं, इस कारण इस ज्वालामुखी को “भूमध्य सागर का प्रकाश स्तम्भ” कहते हैं.


8.गेसर (Geyser) बहुत से ज्वालमुखी क्षेत्रो में उदगार के समय दरारों तथा सूराखो से होकर जल तथा वाष्प कुछ अधिक ऊँचाई तक निकलने लगते हैं. इसे ही गेसर कहा जाता हैं.

Friday, 15 July 2022

Tuesday, 12 July 2022

आईपीएस श्री अजीत कुमार डोभाल के बारे में कुछ खास बातें

चाणक्य जैसा दिमाग और बाजीराव जैसा हौंसला। 

असली जिंदगी का james bond। 

IPS श्री #अजित कुमार डोभाल जो पाकिस्तान में 6 साल भारत की ओर से जासूस रहे।


भारत के बदलते और खूंखार होते रुख के पीछे का mastermind।


इनके बारे में कुछ ख़ास बातें :

* 1945 में एक गढ़वाली ब परिवार में जन्म। पिता आर्मी में ब्रिगेडियर थे। दादा प्रथम विश्व युद्ध में लड़े। 

* 1968 में IPS का एग्जाम टॉप किया। केरल batch के IPS officer बने। 

* 17 साल की duty के बाद ही मिलने वाला medal 6 साल की duty के ही बाद मिला।

* पाकिस्तान में जासूस के तौर पर तैनाती। पाकिस्तान की आर्मी में मार्शल की पोस्ट तक पहुंचे और 6 साल भारत के लिए जासूसी करते रहे। 

* 1987 में खालिस्तानी आतंकवाद के समय पाकिस्तानी agent बनकर दरबार साहिब के अंदर पहुंचे। 3 दिन आतंकवादियों के साथ रहे। आतंकवादियों की सारी information लेकर operation black thunder को सफलता पूर्वक अंजाम दिया। 

* 1988 में कीर्ति चक्र मिला। देश का एक मात्र non army person जिसे यह award मिला है। 

*असम गए। वहां उल्फा आतंकवाद को कुचला। 

* 1999 में plane hijacking के समय आतंकवादियों से dealing की

* RSS के करीबी होने के कारण मोदी ने सत्ता में आते ही NSA (National Security Advisor) बनाया

* बलोचिस्तान में raw फिर से active की। बलोचिस्तान का मुद्दा international बनाया। 

* केरल की 45 ईसाई नर्सों का iraq में isis ने किडनैप किया। डोभाल खुद इराक गए। isis से पहली बार hostages ज़िंदा बिना बलात्कार हुए (महिला) वापिस लौटे 

* राष्ट्रपति अवार्ड मिला। 

* 2015 मई में भारत के पहले सर्जिकल operation को अंजाम दिया। भारत की सेना myanmar में 5 किमी तक घुसी । 50 आतंकवादी मारे। 

* नागालैंड के आतंकवादियों से भारत की इतिहासिक deal करवाई। आतंकवादी संगठनों ने हथियार डाले। 

* भारत की defence policy को agressive बनाया। भारत की सीमा में घुस रहा पाकिस्तानी ship बिना किसी warning के उड़ाया। कहा बिरयानी खिलाने वाला काम नही कर सकता। 

* कश्मीर में सेना को खुली छूट दी। pallet gun सेना को दिलवाईं। पाकिस्तान को दुनिया के मुस्लिम देशों से ही तोड़ दिया।


* 2016 september आज़ाद भारत के इतिहास का 1971 के बाद सबसे इतिहासिक दिन। डोभाल के बुने गए surgical operation को सेना ने दिया अंजाम। PoK में 3 किलोमीटर घुसे। 40 आतंकी और 9 पाकिस्तानी फौजी मारे। दोनों surgical strikes में zero casuality

*Right Wing Hindu संगठन vivekanand youth forum की स्थापना की।


एक वो बाजीराव था जो कहा करता था मैं दिल्ली जीत सकता हूँ। मैं दिल्ली पर भगवा लहरा सकता हूँ।और उसने वो कर दिया जो शिवाजी ना कर सके। दिल्ली से मुगलों का नाश । एक यह डोभाल है जो कहता है की मैं इस्लामाबाद जीत सकता हूँ। सरकारें हौंसला दिखाएँ। डोभाल बहुत कुछ कर सकते हैं। 

गर्व है।

महाभारत चक्रव्यूह️

 महाभारत का कुरुक्षेत्र युद्ध विश्व का सबसे बड़ा युद्ध था।  ऐसा भीषण युद्ध इतिहास में केवल एक बार हुआ था।  अनुमान है कि महाभारत के कुरुक्षेत्र युद्ध में भी परमाणु हथियारों का इस्तेमाल किया गया था।

  'चक्र' का अर्थ है 'पहिया'

           और

  'व्यूह' का अर्थ है 'गठन'

  चक्रव्यूह एक चक्र की तरह घूमने वाली सरणी है।  चक्रव्यूह कुरुक्षेत्र युद्ध की सबसे खतरनाक युद्ध प्रणाली थी।  यद्यपि आज का आधुनिक विश्व भी चक्रव्यूह जैसे युद्ध तंत्रों से अनभिज्ञ है।  चक्रव्यूह या पद्मव्यूह को भेदना असंभव था।  द्वापरयुग में केवल सात लोग ही इसे भेदना जानते थे।

  भगवान कृष्ण के अलावा, केवल अर्जुन, भीष्मपितामह, द्राणाचार्य, कर्ण, अश्वत्थामा और प्रद्युम्न ही व्यूह को भेद सकते थे।

  अभिमन्यु केवल चक्रव्यूह में प्रवेश करना जानता था।


  चक्रव्यूह में सात परतें थीं।  सबसे बहादुर सैनिक अंतरतम परत में तैनात थे।  इन परतों को इस तरह से बनाया गया था कि आंतरिक परत के सैनिक बाहरी परत के सैनिकों की तुलना में शारीरिक और मानसिक रूप से अधिक मजबूत थे।

  सबसे बाहरी परत में पैदल सेना के जवान तैनात थे।  भीतरी परत में शस्त्रों से सुसज्जित हाथियों की सेना हुआ करती थी।

  चक्रव्यूह की रचना एक चक्रव्यूह की तरह थी जिसमें एक बार दुश्मन फंस गया, तो घन एक चक्र बन गया।

  चक्रव्यूह में हर परत की सेना घड़ी के कांटे की तरह हर पल घूमती रहती थी।  इससे सरणी के अंदर प्रवेश करने वाला व्यक्ति अंदर खड़ा हो जाता और बाहर का रास्ता भूल जाता।  महाभारत में, व्यूह की रचना गुरु द्राणाचार्य ने की थी।

  चक्रव्यूह को युग का सर्वश्रेष्ठ सैन्य दलदल माना जाता था।  युधिष्ठिर को बंदी बनाने के लिए ही इस सरणी का निर्माण किया गया था।  ऐसा माना जाता है कि लड़ाई कुरुक्षेत्र नामक स्थान पर 48×128 किमी के क्षेत्र में हुई थी, जिसमें भाग लेने वाले सैनिकों की संख्या 1.8 मिलियन थी!


  चक्रव्यूह को मृत्यु का चरखा भी कहा जाता है।  क्योंकि एक बार वह इस नजारे के अंदर चले गए तो कभी बाहर नहीं आ सके।  पृथ्वी की तरह यह भी अपनी धुरी पर घूमता था, साथ ही प्रत्येक परत भी इसके चारों ओर चक्कर लगाती थी।  इस कारण से बाहर निकलने का द्वार हर समय एक अलग दिशा में बदल जाता था जिससे दुश्मन भ्रमित हो जाता था।  अद्भुत और अकल्पनीय युद्ध प्रणाली चक्रव्यूह थी।  आज की आधुनिक दुनिया भी युद्ध में इतनी जटिल और असामान्य युद्ध प्रणाली को नहीं अपना सकती है।


  आपको जानकर हैरानी होगी कि संगीत या शंख की ध्वनि के अनुसार चक्रव्यूह के सैनिक अपनी स्थिति बदल सकते थे।  कोई भी सेनापति या सैनिक अपनी मर्जी से अपनी स्थिति नहीं बदल सकता था।

  अद्भुत अकल्पनीय


  जरा सोचिए कि हजार हजार साल पहले चक्रव्यूह जैसी घातक युद्ध तकनीक को अपनाने वाले कितने बुद्धिमान रहे होंगे।


  चक्रव्यूह एक तूफान की तरह था जिसने अपने रास्ते में सब कुछ उड़ा दिया और उसे एक तिनके की तरह नष्ट कर दिया।  अभिमन्यु वायुह के अंदर प्रवेश करना जानता था लेकिन बाहर निकलना नहीं जानता था।

  इस कारण कौरवों ने छल से अभिमन्यु का वध कर दिया था।

  ऐसा माना जाता है कि चक्रव्यूह के गठन ने दुश्मन सेना को मानसिक और मानसिक रूप से इतना कमजोर कर दिया कि दुश्मन के हजारों सैनिकों ने एक पल में अपनी जान गंवा दी।

  श्रीकृष्ण, अर्जुन, भीष्मपितामह, द्रोणाचार्य, कर्ण, अश्वत्थामा और प्रद्युम्न के अलावा चक्रव्यूह से बाहर निकलने की रणनीति किसी के पास नहीं थी।


  सदियों पहले भी इस तरह की वैज्ञानिक रूप से अनुशासित रणनीति का गठन करना कोई सामान्य विषय नहीं है।  महाभारत के युद्ध में तीन बार चक्रव्यूह बना, जिसमें से एक में अभिमन्यु की मृत्यु हो गई।  कृष्ण की कृपा से ही अर्जुन ने चक्रव्यूह में छेद कर जयद्रथ का वध किया था।

   हमें गर्व होना चाहिए कि हम उस देश के हैं, जिसमें सदियों पहले के विज्ञान और प्रौद्योगिकी का अद्भुत प्रदर्शन देखने को मिलता है।  निस्संदेह, चक्रव्यूह न तो अतीत था और न ही भविष्य की युद्ध तकनीक।  इसे न किसी ने अतीत में देखा है और न ही भविष्य में कोई इसे देख पाएगा।

ऐतिहासिक जानकारी

1962 में जिस तरह चीन ने भारत की पीठ में छुरा घोंपा,

उसका हम आज तक जवाब नहीं दे पाए हैं...

आप कभी उत्तराखंड के रानीखेत जाइए..

वहां कुमाऊं_रेजिमेंट का म्यूजियम देखिए...

आपके रौंगटे खड़े हो जाएंगे...

मेजरशैतानसिंह किस तरह अपने 114 जवानों के साथ रिजांग ला पर 2 हजार से ज्यादा चीनी सैनिकों से लड़े...,

किस तरह नंवबर-दिसंबर की हाड़ गला देने वाली ठंड में भारतीय सैनिकों ने कामचलाऊ जूते और खस्ताहाल जैकेट पहनकर चीनी सैनिकों के छक्के छुड़ा दिए,

उसको सोचकर भी दिल दहल जाता है...

ये वही मेजर शैतान सिंह थे...,

जिन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू के रिश्तेदार और सेना की उत्तर पूर्वी ब्रिगेड के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल बी एम कौल का लड़ाई से पीछे हटने का आदेश ठुकरा दिया था, अंतिम दम तक लड़े और जब गोलियों से छलनी हो गए तब उनके दो साथी जवानों ने कहा सर आपको मेडकल यूनिट तक भेज देते हैं.

मेजर शैतान सिंह ने कहा- मुझे और मेरी मशीनगन को यहीं छोड़ दो...,

हाथ कट चुके थे, पेट औऱ जांघ में गोली लगी थी, मेजर ने पैर से मशीनगन का ट्रिगर दबाया और दुश्मन का अंतिम साँस तक सामना किया, लड़ते-लड़ते प्राण न्योछावर कर दिए लेकिन उस पोस्ट पर दिन भर चीनी सेना को इंच भर आगे नहीं बढ़ने दिया...

इस अदम्य साहस और वीरता के लिए मेजर शैतान सिंह को परमवीर चक्र मिला.

ये वही मेजर शैतान सिंह थे...,

जिनको लेकर कवि प्रदीप ने अमर गीत लिखा और लता मंगेशकर ने गाया...

"थी खून से लथपथ काया फिर भी बंदूक उठा ली... दस-दस को एक ने मारा, फिर अपनी जान गंवा दी’

ऐसे वीरो की वजह से हम लोग अपने घरो में सुरक्षित बेठे है

मेजर शैतान सिंह को शत शत नमन

                  वन्देमातरम

मज़दूर दिवस

 

प्रत्येक वह व्यक्ति जो अपने श्रम के बदले मेहनताना लेता है, श्रमिक या मज़दूर कहलाता है । एक ऐसा भी समय था जब मजदूरों का शोषण अपने चरम पर रहा…. उनसे 10 से 16 घंटे अनिवार्य काम लिया जाता था एवं उनकी सुरक्षा का ध्यान भी नहीं रखा जाता था , काम के बोझ और थकान के कारण हादसों में कई कर्मियों को मौत हो जाती थी, फिर मुआवज़े का भी तो कोई प्रावधान भी नहीं था ।


समय समय पर श्रमिक अधिकारों को लेकर आंदोलन होते रहे और माँगें उठती रहीं जिसका परिणाम यह हुआ कि विभिन्न क़ानून श्रमिक अधिकारों की रक्षा के लिए लागू हुए जिनमें से कुछ महत्वपूर्ण हैं :


कारखाना अधिनियम, 1948, 

औद्योगिक संघर्ष अधिनियम, 1947, 

भारतीय श्रम संघ अधिनियम, 1926, 

मज़दूरी-भुगतान अधिनियम, 1936, 

श्रमजीवी क्षतिपूर्ति अधिनियम, 1923 

कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948, 

कर्मचारी प्रॉविडेण्ट फण्ड अधिनियम, 1952, 

न्यूनतम भृत्ति अधिनियम, 1948, 

कोयला, खान श्रमिक कल्याण कोष अधिनियम, 1947, 

भारतीय गोदी श्रमिक अधिनियम, 1934, 

खदान अधिनियम, 1952 तथा 

मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 इत्यादि…. 


जैसा कि मुझे याद आता है भारत में अभी 128 श्रम तथा औद्योगिक विधान लागू हैं…. बावजूद इसके मज़दूरों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है॥ हाँ तुलनात्मक रूप से उनकी स्थिति में सुधार तो है पर वैसा नहीं जैसा होना चाहिए॥ क़ानून बहुत बन गए अब क्रियान्वयन का वक़्त है , बातें बहुत हो चुकी अब काम का वक़्त है, बहुत कुछ कहा जा चुका बस अमल करना ही बाक़ी है॥